लोरिक नगर गढ़ रीवाँ का इतिहास


प्राचीन इतिहास

छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर से महज 30 कि.मी. की दुरी पर स्थित लोरिक नगर गढ़ रीवाँ, ब्लॉक आरंग, जिला रायपुर का इतिहास बहुत ही गौरवशाली और ऐतिहासिक है। यहाँ के लोरिक चंदा की प्रणय लीला तथा पुरातत्व विभाग की खुदाई पुरे छत्तीसगढ़ में प्रशिद्ध है। यहां पुरातत्व विभाग को उत्खनन में बहुत से अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विभाग की माने, तो रीवां एक ऐसा गांव है, जहां उत्खनन में सर्वाधिक सिक्के मिले हैं। तालाब के किनारे एक टीला है। उस टीले में खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को 6 हजार ईसा पूर्व के भी सिक्के मिले हैं। खुदाई के समय यहां कुषाण काल, कलचुरी व पाण्डुवंशीय धरोहर भी मिल रहे हैं! छत्तीसगढ़ में ये पहली बार है जब किसी एक जगह पर अलग-अलग काल के सिक्के मिल रहे हैं! कोसांबी से लेकर मल्हार, मल्हार से सिरपुर, सिरपुर से रीवा होते हुए राजिम वाले व्यापारिक रूट को टच करता है! पहले व्यापार जल मार्गों से होता था! ऐसे में व्यापारिक केंद्रों में से एक केंद्र रीवा गढ़ को माना जाता था! रायपुर में जनपद काल से मराठा काल के अवशेष तथा सिक्के मिलें है जिसमे सिक्कों के माध्यम से बताया जा सकता है कि यहां लोकल डायनेस्टी थी! उस दौरान भी सिक्के जारी कर व्यापार को काफी बढ़ाया गया था! ऐसे में व्यापारिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ का यह स्थल काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है!


पुरातत्व विभाग की खुदाई की जानकारी

राजधानी से सटे आरंग के समीप ग्राम रीवा में प्राचीन स्तूपों की खुदाई में संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों को बड़ी सफलता मिली है। विशेषज्ञों का दावा है कि खुदाई में 18 सौ वर्ष पुराने चांदी और सोने के सिक्के के साथ मणिकणिकाएं मिली है। पुरावशेषों के अन्वेषण के लिए शुरू किए गए इस उत्खनन में एक फीट की खुदाई में नौ जून को ही 18 सौ साल पुरानी ईटें मिलीं। उत्खनन करते समय 40 से अधिक टीले मिले हैं, जो बौध स्तूप की तरह हैं। महानदी के पश्चिमी किनारे में बसे इस शहर में सिक्के और मणिकणिकाओं को बनाने का कार्य किया जाता था। पानी की कमी के चलते धीरे-धीरे शहर पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया और पुरातत्व के अवशेष वहीं दब गए। खुदाई के 13 दिनों बाद बड़ी मात्रा में मणिकणिकाएं और सोने-चांदी के सिक्के मिले हैं। ये सिक्के सात वाहन काल के समय के हैं। चालीस टीलों को देखकर लगता है कि यह बहुत बड़ा शहर था। खुदाई में मिले 'माघ वंशी' सिक्कों पर विशेष शोध काम किया जा रहा है। जो छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक नए राजवंश के शामिल होने का संकेत देता है। सिक्के मिलने के संकेत रीवा विभिन्न सामग्रियों के व्यापार और निर्माण के लिए एक जगह हो सकती है। रीवा गढ़ के बाद सिरपुर का उदय हुआ होगा।


लोरिक चंदा

लोरिक-चंदा की कहानी, छत्तीसगढ़ की एक प्रेमगाथा है। यह कथा लोकगीत, नृत्य, और नाटक के रूप में प्रस्तुत की जाती है! इस कहानी में लोरिक और चंदा के बीच प्रेम की कहानी को दिखाया गया है, प्रचलित कथा के अनुसार राजा महर की पुत्री चंदा और अहीर यानी यादव जाति के लोरिक के बीच गहरा प्रेम प्रसंग था! इनकी प्रेम कहानी पर फिल्म के साथ ही कई गीत भी लिखे गए हैं! लोरिक चंदा एक प्रणय गाथा है! यह गढ़ गौरा (आरंग) और ग्राम रीवा से संबंधित है! चूंकि राजा मोरध्वज की नगरी के रूप में आरंग को जानते हैं, जो पूर्व में गढ़ गौरा के नाम से भी प्रचलित था! उस दौरान वह राज्य राजा महर का था! राजा महर की पुत्री का नाम चंदा था! चंदा को रीवा गांव के लोरिक से प्रेम हो गया था! लोरिक अपने साथ एक बांसुरी रखता था, वह बहुत बहुत अच्छा बांसुरी बजाता था! उनके स्वर राज महल तक सुनाई देती थी! चंदा बांसुरी की आवाज सुनकर दौड़कर चली आती थी! दोनों की प्रणयलीला रीवा से शुरू होती थी! इस तरह से ग्राम रीवा के हर गली में उनका एक प्रकार से मिलन और प्रेम गाथा की कहानी प्रचलित है!