लोरिक चंदा की अमर प्रेम कहानी


लोरिक चंदा

लोरिक चंदा की अमर प्रेम कहानी राजधानी रायपुर से लगे आरंग इलाके के लोरिक नगर गढ़ रीवाँ की है। प्रचलित कथा के अनुसार राजा महर की पुत्री चंदा और अहीर यानी यादव जाति के लोरिक के बीच गहरा प्रेम प्रसंग था। इनकी प्रेम कहानी पर फिल्म के साथ ही कई गीत भी लिखे गए हैं। लोरिक चंदा एक प्रणय गाथा है। यह गढ़ गौरा और ग्राम रीवा से संबंधित है। चूंकि राजा मोरध्वज की नगरी के रूप में आरंग को जानते हैं, जो पूर्व में गढ़ गौरा के नाम से भी प्रचलित था। उस दौरान वह राज्य राजा महर का था। राजा महर की पुत्री का नाम चंदा था। चंदा को रीवा गांव के लोरिक से प्रेम हो गया था। लोरिक के पिता अपने दो बच्चों के साथ जब दूसरे राज्य से आए, तो उन्होंने राजा महर को एक भैंस का बच्चा भेंट किया था। वह भैंस बहुत ही अद्भुत था। जिससे राजा महर प्रसन्न हुए और लोरिक के पिता को रीवां में राज्य करने का आदेश दे दिया। राजा महर ने अपने बेटी चंदा का रिश्ता लोरिक के बड़े भाई बावन से तय किया था। लेकिन लोरिक का बड़ा भाई कुछ कारणवश मोह माया को त्याग कर तपस्या करने जंगल की ओर निकल गए। उनके पिताजी को बड़ा दुख हुआ कि मैं राजा से कैसे ये बात करूं, कैसे मैं उनको बताऊं। चूंकि रिश्ता तय हो चुका था, उस समय लोरिक 18 साल का युवा था। वह दिखने में भी बहुत अच्छा था।

लोरिक भी अपने पिता के साथ राजा मेहर के महल गए थे, जहां लोरिक और चंदा की मुलाकात हुई। चंदा उसे देख कर बहुत प्रभावित हुई, जिसके बाद दोनों का प्रेम गाथा शुरू हुआ। कहते हैं हमारे छत्तीसगढ़ में जो लोकगाथा गाया जाता है और उस गाथा में यह बात सामने आती है कि '12 पाली गढ़ गौरा, 16 रीवा के खोर, पलना में बइठे कुंवर चंदा, लेवत हे लोरिक के शोर।।।' ये बातें लोरिक चंदा की गाथा में खुलकर सामने आती हैं। इसी आधार पर इनका कथा और प्रणयलीला शुरू होता है।" लोरिक अपने साथ एक बांसुरी रखता था, वह बहुत बहुत अच्छा बांसुरी बजाता था। उनके स्वर राज महल तक सुनाई देती थी। चंदा बांसुरी की आवाज सुनकर दौड़कर चली आती थी। दोनों की प्रणयलीला रीवा से शुरू होती थी। इस तरह से ग्राम रीवा के हर गली में उनका एक प्रकार से मिलन और प्रेम गाथा की कहानी प्रचलित है।" वर्तमान में ऐसा कोई सबूत तो नहीं है, लेकिन लोकगीत में यह बात जरूर आती है। रीवा का नाम जरूर लिया जाता है। उसी के आधार पर यह कहानी आगे बढ़ती है। कहतें है उस समय चंदा को पाने के लिए लोरिक ने काफी लड़ाई भी लड़ी, लोगों के ताने भी सुने, उनको बहुत सारे यातनाएं भी मिली। जैसे कि हीर-रांझा की कहानी है, उसी प्रकार से यह कहानी भी आगे बढ़ती है और इस गांव को लोग आज भी लोरिक नगर ग्राम रीवा के नाम से जाना जाता है।" आरंग के रीवां गांव से लोरिक और चंदा की प्रेम कहानी की शुरुआत हुई और कहानी के अंत में चंदा लोरिक की हो जाती है।