गाँव के प्राचीन मंदिर


खल्लारी माता मंदिर

खल्लारी माता का मंदिर गाँव के प्राचीन मंदिरों में से एक हैं जो चंडी मंदिर का ही एक मुख्य मंदिर है जिसकी देखभाल चंडी मंदिर समिति द्वारा किया जाता है । चंडी माता मंदिर से 500 मीटर की दुरी पर उत्तर की दिशा में स्थित है । पुरानी मान्यता है कि यहाँ पर पहले खल्लारी माता के नाम से मेला लगता था जहाँ लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर माता के दर्शन करने आते थे ।


मौली माता मंदिर

मौली माता का मंदिर गाँव के प्राचीन मंदिरों में से एक हैं जो चंडी मंदिर का ही एक अन्य मुख्य मंदिर है जिसकी देखभाल चंडी मंदिर समिति द्वारा किया जाता है । चंडी माता मंदिर से 500 मीटर की दुरी पर गाँव के बस्ती की ओर जाने वाले रास्ते में स्थित है । पुरानी मान्यता है कि मौली माता के दर्शन से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है ।


महामाया माता मंदिर

महामाया माता का मंदिर गाँव के प्राचीन मंदिरों में से एक हैं जो चंडी मंदिर का ही एक अन्य मुख्य मंदिर है जिसकी देखभाल चंडी मंदिर समिति द्वारा किया जाता है । चंडी माता मंदिर से 500 मीटर की दुरी पर दक्षिण दिशा की ओर स्थित है । पुरानी मान्यता है कि जिन लोगों को संतान की प्राप्ति नहीं होती उनको महामाया माता के दर्शन संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है ।


भैसासुर मंदिर

भैसासुर मंदिर गाँव के प्राचीन मंदिरों में से एक हैं जो चंडी मंदिर का ही एक अन्य मुख्य मंदिर है जिसकी देखभाल चंडी मंदिर समिति द्वारा किया जाता है। चंडी माता मंदिर से 500 मीटर की दुरी पर पश्चिम दिशा की ओर स्थित है । पुरानी मान्यता है कि नवरात्रि में भैसासुर जी की पूजा नहीं करने से वो माता के ज्योत जंवारा को आ के चर देते हैं इस लिए नवरात्रि पर्व में भैसासुर जी की पूजा करना अत्यंत आवश्यक है।


प्राचीन शिव मंदिर शिवघाट

बंधवा तालाब के ऊपर शिवघाट में स्थित प्राचीन शिव मंदिर गाँव का एक प्राचीन शिव मंदिर है । यह मंदिर कब से स्थापित है कोई नहीं जानता यहाँ पर स्थित भोले बाबा का शिवलिंग खुले आसमान में इमली पेड़ के निचे शुरू से स्थापित है । दिवाली के समय जब गाँव में गौरा गौरी निकाला जाता है तो यहीं के मिट्टी से गौरा गौरी को बनाया जाता है जिसको बाजा गाजा के साथ ले जाया जाता है।


प्राचीन हनुमान मंदिर नैयापारा

गाँव के नैयापारा में स्थित प्राचीन हनुमान जी की मंदिर बहुत प्राचीन है । दिवाली के समय गाँव के सभी लोगों के घरो से प्राचीन हनुमान मंदिर में दीपक जलाया जाता है । गाँव में प्राचीन हनुमान मंदिर की विशेष महत्त्व है इस मंदिर में गाँव के किसान मजदूरों के द्वारा साल में एक बार विशेष पूजा अर्चना करके प्रसाद वितरण करते हैं तथा गाँव के छोटे बच्चों को पैसा वितरण किया जाता है जिसका विशेष महत्त्व है । प्राचीन हनुमान मंदिर में स्थित हनुमान जी की वर्तमान प्रतिमा का जो स्वरुप है वह पहले अलग हुवा करता था जो कि प्रतिमा पर बंदन के लेप के कारण पूरी तरह से ढक चूका था किसी को नहीं पता था कि जो अभी लोग हनुमान जी को देख रहे हैं उसके अन्दर में हनुमान जी की वास्तविक प्रतिमा है तो हनुमान जी की कृपा से गाँव के एक व्यक्ति के द्वारा बंदन का लेप हटा कर देखा गया तो हनुमान जी की वास्तविक प्रतिमा दिखाई देने लगी ।


जगन्नाथ मंदिर नैयापारा

गाँव के नैयापारा में स्थित प्राचीन जगन्नाथ जी की मंदिर स्थापित है जहाँ प्रतिवर्ष रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा जी का रथयात्रा निकाला जाता है जिसको गाँव में घुमाया जाता है । प्रतिवर्ष रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा के रास्ते में मेला लगता है जिसमे गाँव के लगभग सभी लोग उपस्थित होकर भगवान जगन्नाथ के रथ को धक्का दे कर पुण्य के भागीदार बनते हैं । रथ को गाँव में घुमाने के पश्चात भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा जी को 11 दिनों के लिए गाँव में ही किसी के घर रखते हैं जिसको भगवान जगन्नाथ के मौसी का घर कहते हैं । जहाँ से पूजा अर्चना कर के 11 दिन के पश्चात पूनः मंदिर में स्थापित करते हैं ।


सहाड़ा देव मंदिर

सहाड़ा देव जी का मंदिर गाँव के प्राचीन मंदिरों में से एक है जिसका एक विशेष महत्त्व है । गाँव में किसी के भी घर गौ माता जब बच्चा देती हैं तो पहला पिला दूध सहाड़ा देवता को चढ़ाया जाता है जिससे की भगवान सहाड़ा देव गाँव के सभी जीव जंतुओं की रक्षा करते हैं । दीवाली के समय भी सहाड़ा देव जी की यादव समाज के द्वारा विशेष पूजा अर्चना किया जाता है । गाँव के किसान भी धान बुवाई करने से पहले भी सहाड़ा देवता में धान चढ़ा कर ही धान बुवाई का कार्य प्रारंभ करते हैं ।


सतबहनिया माता मंदिर

सतबहनिया माता मंदिर भी गाँव के प्राचीन मंदिरों में से एक हैं जिसकी विशेष महत्त्व है। किसी के भी घर बच्चा पैदा होने पर सबसे पहले सतबहनिया माता को चूड़ी पाट भेंट की जाती है, वह भी काली चूड़ी। माता को नई चूड़ी चढ़ाकर वहां चढ़ी हुई दूसरी चूड़ी उठाते हैं और बच्चे को पहनाते हैं। गाँव के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं, उनकी कृपा प्राप्त होती है और चूड़ी भेंट नहीं करने पर बच्चे को कष्ट होता है। कोई नहीं जानता कि यह परंपरा कब से चली आ रही है। पूर्वज ऐसा करते थे इसलिए लोग पीढ़ी दर पीढ़ी माता को पूजते आ रहे हैं। गाँव में जब भी बाज़ार होता है तो बाजार के शुरू में सबसे पहले माता सतबहनिया में ही सामान चढ़ाया जाता है जो भी सामान बेचने वाले आए रहते हैं । इस प्रकार गाँव के सुख, शांति और समृधि में माता सतबहनिया का विशेष कृपा है ।